प्रतिरोध क्या है और किसे कहते है what is resistance

जो भी चीज़ें धारा के प्रवाह में रुकावट डालता है उससे प्रतिरोध कहते है प्रतिरोध का SI मात्रक ओम होता है लेकिन हम इस तरह से नही

एक EXAMPLE के द्वारा समझेंगे
अगर हम एक पानी के नल का एक्साम्पल ले तो आप देखे होंगे की अगर नल के पाइप में पानी तब तक आता ाही जब तक हम नल को खोल के रखते है जैसे ही हम णाल को धीरे धीरे बंद करना चालू करते है वैसे

वैसे पानी कम गिरने लगता है और एक टाइम ऐसा आता है की नाल को पूरा बंद कर देते है तो पानी भी पूरा बंद हो जाता है यही ठीक इसी तरह इलेक्ट्रिकल सिस्टम में भी होता जैसे जैसे हम रेजिस्टेंस को बढ़ाते जायेंगे वैसे

वैसे हमारा करंट कम होता जायेगा और एक ऐसा टाइम आएगा जब वो पूरा बंद हो जायेगा वो कैसे मै बताता हूँ जैसे जो हमारा पानी का पाइप है

वो हमारा उसको हम मान लेते है की वो पाइप हमारा इलेक्ट्रिकल वायर है और पानी को हम करंट मान लेते है और नल का वाल्व को हम रेसिस्टर मान लेते है तो जैसे जैसे रेसिस्टर के वैल्यू को
बढ़ाते जायेंगे वैसे वैसे हमारा करंट वो कम होने लगेगा ठीक
पानी जैसे काम हो रहा रहा था

एक और एक्साम्पल लेते है जैसे आप देखे होंगे की कि हीटर का coil element होता है वो हमारा nichrome का बना होता है वो इसीलिए क्यूंकि nichrome वायर का रेजिस्टेंस बहुत ज्यादा होता है इसीलिए उसका इस्तेमाल हीटिंग एलिमेंट के रूप में किया जाता है

अगर हमे इसे find करना है इसकी वैल्यू तो हम ohms law की मदद से आसानी से find कर सकते है

R=V/I

R = RESISTANCE

V = VOLTAGE

I = CURRENT

तो आशा करते है आपको अच्छे से समझ आया होगा की रेजिस्टेंस किससे कहता है तो अगर आपको इसीतरह इलेक्ट्रिकल से जुडी जानकारी चाहिए तो पेज FOLLOW को करे

Difference between transmission line and Distribution line in Hindi….

नमस्कार दोस्तों आज हम ट्रांसमिशन लाइन और डिस्ट्रीब्यूशन लाइन क्या होती है और इनका क्या काम होता है यह जान लेंगे। इसी के साथ में हम Transmission Line और Distribution Line के बीच के अंतर को भी जान लेंगे।

What is Transmission Line (ट्रांसमिशन लाइन क्या है?)

दोस्तों ट्रांसमिशन लाइन का बेसिक काम जेनरेटिंग स्टेशन को सब्सटेशन के साथ साथ जोड़ना होता है। जैसे की आप मान लीजिए की एक पावर प्लांट है, जहां पर इलेक्ट्रिसिटी को जनरेट मतलब बनाया जा रहा है।

जैसा की हम सभी को पता है की पावर प्लांट में इलेक्ट्रिसिटी को 11 KV वोल्टेज में जनरेट किया जाता है। इसके बाद में हम पावर स्टेशन पॉइंट में इस वोल्टेज को ट्रांसफार्मर की मदद से स्टेपअप कर देते है। अभी हम मान लेते है की इस 11000 वोल्टेज को हम 220 KV में स्टेपअप कर रहे है।  वोल्टेज को जेनरेटिंग स्टेशन पर स्टेपअप करने के बाद अब हम ट्रांसमिशन लाइन की मदद लेते है। यह ट्रांसमिशन लाइन इस स्टेपअप हो चुके वोल्टेज को आगे सबस्टेशन तक पहुँचाती है।

दोस्तों यहाँ एक बात का धयान रखिये की अभी तक हमने कही पर भी कस्टमर को इलेक्ट्रिकल सप्लाई देने की बात नहीं करी है। अभी तक हमने जेनरेट की गयी सप्लाई को ट्रांसमिशन लाइन की मदद से सबस्टेशन तक ही पहुंचाया है।

What is Distribution Line (डिस्ट्रीब्यूशन लाइन क्या है?)

अब दोस्तों आगे हम डिस्ट्रीब्यूशन लाइन की बात करे रहे है। इस डिस्ट्रीब्यूशन लाइन लाइन का उपयोग हम इलेक्ट्रिकल सप्लाई को अलग अलग जगह डिस्ट्रब्यूट करने के लिए लेते है।

मतलब- जैसे की आप किसी शहर में रहते है, अब पावर प्लांट में बनने वाली बिजली ट्रांसमिशन लाइन की मदद से आपके पास के किसी सबस्टेशन में तो आ गयी है, लेकिन हमें बिजली की जरूरत तो हमारे घरो में इसके अलावा कंपनी आदि में है। तो अब आगे इलेक्ट्रिकल सप्लाई को पहुंचाने का काम डिस्ट्रब्यूशन लाइन का ही होता है।

सबस्टेशन में आये वोल्टेज को हम सबसे पहले जरूरत के अनुसार स्टेपडाउन डाउन कर देते है।  इसके बाद इस वोल्टेज को हम डिस्ट्रीब्यूशन लाइन की मदद से कस्टमर के पास पहुंचा देते है।

Transmission Line and Distribution Line Difference

ट्रांसमिशन लाइन और डिस्ट्रब्यूशन लाइन में अंतर

  • सबसे पहला अंतर तो मैंने आपको बता दिया है की ट्रांसमिशन लाइन का उपयोग जेनरेटिंग इलेक्ट्रिकल सप्लाई को सबस्टेशन के पास पहुंचाना होता है। जबकि Distribution Line का काम इलेक्ट्रिकल सप्लाई को सबस्टेशन से लेकर कस्टमर तक पहुँचाना होता है।
  • ट्रांसमिशन लाइन के वोल्टेज डिस्ट्रब्यूशन लाइन से काफी ज्यादा होते है। इस वोल्टेज ज्यादा होने के पीछे का कारण पर हम हमारी अगली पोस्ट में जानेंगे। 
Electric power transmission system
  • ट्रांसमिशन लाइन में हमेशा 3 wire सिस्टम का ही उपयोग किया जाता है, मतलब इसमें न्यूट्रल को ट्रांसफर नहीं किया जाता है। लेकिन अगर हम डिस्ट्रब्यूशन लाइन की बात करे तो इसमें ज्यादातर3 phase : 4 वायर सिस्टम का ही उपयोग किया जाता है। इसमें हम तीनो फेज के साथ में न्यूट्रल वायर को भी ट्रांसफर करते है।
  • इसके बाद एक अंतर हम इंसुलेशन के ऊपर भी देख सकते है। क्युकी ट्रांसमिशन लाइन के वायर में इंसुलेशन का उपयोग नहीं किया जाता है, लेकिन अगर हम डिस्ट्रब्यूशन लाइन की बात करे तो इस वायर पर इंसुलेशन की कोटिंग की जाती है।

तो दोस्तो उम्मीद है आज आपके Transmission Line और Distribution Line से जुड़े कई सवालो के जवाब मिल गए होंगे। अगर आपके अभी भी कोई सवाल electrical इंजीनियरिंग से जुड़े है, तो आप हमे कमेन्ट करके जरूर बताये।

WHY USE HIGH VOLTAGE IN POWER TRANSMISSION LINE IN HINDI ……….

आज हम ट्रांसमिशन लाइन के वोल्टेज ज्यादा क्यों होते हैं तो चलिए जान लेते हैं।

दोस्तो हम सबसे पहले यह जान लेते है, की हमारे पावर प्लान्ट के अन्दर बिजली कितने वोल्टेज पर बनती है। भारत में बिजली को  6.6 KV या फिर 11KV के अंदर बनाया जाता है, (मतलब 6600 वोल्टेज या फिर 11000 वोल्टेज के अंदर)। 

इसके बाद में हम वहाँ पर एक स्टेपअप ट्रांसफॉर्मर को लगा देते है। यह स्टेपअप ट्रांसफॉर्मर कम वोल्टेज को लेकर उसको ज्यादा वोल्टेज में बदल कर हमे दे देता है। और फिर हम इस हाई वोल्टेज को ट्रांसमिशन लाइन की मदद से भेज देते है।

जैसे- हमने एक स्टेपअप ट्रांसफार्मर के अंदर 11000 वोल्टेज को जोड़ा है, अब हम इस वोल्टेज को हमारी आवश्यक्ता अनुसार बड़ा सकते है। मतलब ट्रांसफार्मर से काफी ज्यादा वोल्टेज ले सकते है। 

अब हम सबसे पहले ट्रांसमिशन लाइन में ज्यादा वोल्टेज को देने के फायदे जान लेते है फायदे)

1. Voltage Drop (वोल्टेज ड्राप)
ट्रांसमिशन लाइन में ज्यादा वोल्टेज भेजने का हमको सबसे पहला फायदा हमको वोल्टेज ड्राप से होता है।

वोल्टेज ड्राप क्या होता है?
इसको हम आसानी से इस तरह समझ सकतें है। हमने एक जगह से जितने वोल्टेज को भेजा लेकिन दूसरी जगह पर हमे पूरे वोल्टेज नही मिल पा रहे है। मतलब बीच के अंदर ही हमारे कुछ वोल्टेज कम हो गए, तो यही वोल्टेज ड्राप कहलाता है।

2. Transmission wire cost reduced
वोल्टेज ज्यादा करने से हमारी ट्रांसमिशन लाइन को बनाने की लागत में कमी मिल जाती है।

ऐसा इस वजह से होता है। क्योंकि हम सभी को पता है की अगर हम वोल्टेज को बढ़ाते है, तो करंट कम हो जाता है। इसी तरह जब हम ट्रांसमिशन लाइन के भी वोल्टेज को ज्यादा करके भेजते है तो हमारी लाइन का करंट कम हो जाता है। 

और हम सभी को पता है, जितना कम करंट हमारे वायर से गुजरेगा हम उतने ही पतले वायर का उपयोग कर सकते है।

इस तरह से हम वोल्टेज को ज्यादा करके करंट को कम कर देते है। जिससे हमको ट्रांसमिशन लाइन का वायर पतला ही लगाना पड़ता है। और ऐसा करने से हमको वायर खरीदने की लागत में काफी कमी मिल जाती है।

3. Reduce Power loss(रिड्यूस पावर लोस्स)
जब हम वोल्टेज को ज्यादा करके भेजते है, तो इसकी मदद से हमारे इलेक्ट्रिकल में होने वाले काफी सारे लॉसेस कम हो जाते है। और हम सभी को पता है की अगर लॉस कम होंगे तो हमारी इलेक्ट्रिकल की एफिशिएंसी बढ़ जाती है। जोकि हमारे इलेक्ट्रिकल उपकरण के लिए काफी फायदेमंद होती है। 

Disadvantage of High Transmission Voltage (वोल्टेज के ज्यादा होने के नुकसान)

1. Insulator size increase(इंसुलेटर साइज इनक्रीस)

यहाँ पर हम उस इंसुलेटर की बात कर रहे है, जो हमारे इलेक्ट्रिक पोल और वायर के बीच में दूरी को बनाकर रखता है।

दोस्तो जैसा की हम आसान तरीके में यह मानते है की, 11000 वोल्टेज के लिए हमको एक डिस्क को लगाना पड़ता है। इसका मतलब यह है की जितना ज्यादा वोल्टेज होगा हमको उतनी ही ज्यादा डिस्क को लगाना पड़ेगा।

2. Switch Gear Cost increase(स्विच गियर साइज इनक्रीस)

दोस्तो अगर हमने हमारे सिस्टम के वोल्टेज को ज्यादा किया है, तो हमको सर्किट ब्रेकर भी ज्यादा वोल्टेज के लाने पड़ेंगे। और हमको यह बात ध्यान हमेशा ध्यान रखनी है की जितने ज्यादा वोल्टेज का सर्किट ब्रेकर या कोई भी उपकरण होगा, वह उतना ही ज्यादा सेंसिटिव और महँगा होता है।

3. Transmission tower height increase

दोस्तो वोल्टेज को बढ़ाने से हमको तीसरा नुकसान ट्रांसमिशन टावर को बनाने की लागत को लेकर होता है।

जब हम ट्रांसमिशन लाइन के वोल्टेज को बढ़ाते है तो, उसके साथ ही हमको हमारे इलेक्ट्रिकल टावर की साइज को भी बढ़ाना होता है। क्योंकि अगर हम ऐसा नही करेंगे तो हमारा फेज टू अर्थ फाल्ट हो जाएगा। इसलीए हमको वोल्टेज के बढ़ने के साथ ही ट्रान्समिशन वायर की जमीन से दूरी भी बढ़ानी पड़ती है। जिसके कारण हमारा ट्रांसमिशन लाइन की cost बढ़ जाती है।

4. Corona loss(कोरोना लोस्स)

कोरोना लोस्स यह लास्ट पॉइंट है और काफी ज्यादा जरूरी है, यह आपको इलेक्ट्रिकल के इंटरव्यू में जरूर बताना है। जब भी हम वोल्टेज को बढ़ाते है तो इसके साथ ही हमारे ट्रान्समिशन लाइन में कोरोना लोस्स भी बढ़ने लग जाता है।

तो दोस्तो उम्मीद है, आज आपके High VoltageTransmission advantages and disadvantages से जुड़े कई सवालो के जवाब मिल गए होंगे। अगर आपके अभी भी कोई सवाल electrical इंजीनियरिंग से जुड़े है, तो आप हमे कमेन्ट करके जरूर बताये

मोटर के नेमप्लेट को कैसे पढ़ें How to read motor nameplate in hindi

मोटर के नेमप्लेट को कैसे पढ़ें

किसी भी इंडक्शन मोटर के ऊपर उसकी जानकारी के लिए एक नेमप्लेट लगी होती है परन्तु उस मोटर की नेमप्लेट को समझना आसान नही होता है, आज हम आपको बताएंगे की मोटर के नेमप्लेट को कैसे  पढ़ें

मोटर की नेमप्लेट में  सारी जानकारिया लिखी होती है जिसको समझना काफी मुश्किल होता है, पर आज हम आपको नेमप्लेट के एक एक करके सभी के बारे मे जानकारी देंगे।

How to Read Motor Nameplate details in hindi

Siemens   made in Mexico by siemens इसका मतलब है की यह मोटर कहा बनाई गई है और इसका निर्माता कौन है ।

Voltage :-  415D

415D का मतलब है की इस मोटर को चलाने के लिए हमे 415 वोल्टेज देने है।
415D का मतलब यह होता है की इस मोटर को हमे 415 वोल्टेज के आसपास वोल्टेज देने चाहीए। ओर इस मोटर की नेमप्लेट पर जो करंट रेटिंग लिखी है वो 415 वोल्टेज के आधार पर ही लिखी गयी है।
इसमे 415 के आगे लिखे D का मतलब क्या होता है 
हम मोटर को दो तरह से कनेक्शन करके चलाते है। 1 स्टार कनेक्शन 2 डेल्टा कनेक्शन
इसमे हमको एक बात धयान रखनी है, जब कभी हम मोटर को स्टार में कनेक्शन कर रहे है। तो उस समय हमे किसी एक वाइंडिंग पर 415 वोल्टेज नही देने है।
यही बात को समझाने के लिए 415 के आगे D लिखा होता है इसमे D का मतलब डेल्टा कनेक्शन है।

KW/HP (Motor Power)

यह मोटर की ताकत को बताता है। KW का मतलब किलो वाट होता है। और HP का मतलब हॉर्सपावर होता है।

 RPM (Revolution Per Minute)

मोटर पर लिखे RPM का मतलब रेवुलूशन पर मिनिटहोता है।
RPM का मतलब यह है की मोटर का रोटर 1 मिनट मे कितनी बार पूरा घूमता है। 
इस मोटर का RPM 1460 है, मतलब इसका रोटर 1 मिनट मे 1460 बार घूमता है।

IP 55 (ingress protection)

IP यह मोटर की सुरक्षा रेटिंग है जो बताती है की मोटर पानी ओर धूल से किस हद तक सुरक्षित है।

इसमे 55 यह बताता है की हमारी मोटर के अंदर 1mm से अधिक मोटी डस्ट नही जा सकती ओर हमारी मोटर पानी की हल्की हल्की बौछार से पूरी तरह सुरक्षित है।

अगर किसी उपकरण पर IP78 लिखा है, तो 78 का मतलब होता है की वह उपकरण पूरी तरह से डस्ट ओर वाटर प्रोफ है।

 Duty (Motor Type)

मोटर की Duty type एक अलग topic है और हम लोग इसके बारे में किसी दूसरे अध्याय में बात करेंगे लेकिन अभी हमलोग थोड़ा सा समझ लेते हैं

हर मोटर की एक अलग ड्यूटी होती है।

जैसे- इस मोटर की ड्यूटी टाइप S1 है, S1 डयूटी की मोटर को ऐसी जगह लगाया जाता है। जहाँ पर मोटर को एक बार चला दिया जाता है, और फिर उसको काफी समय के बाद बंद करा जाता है। 
अगर S2 डयूटी की मोटर की बात करे तो इस मोटर को उस जगह लगाते हे जहाँ पर हमे मोटर को सिर्फ कुछ समय ही चलाना होता है उसके बाद मोटर काफी समय तक बंद रहती है। मोटर ड्यूटी अलग अलग जरूरत के हिसाब पर  S1 से S10 तक आती है।

Serial Number(NO.K582809)

यह मोटर का सीरियल नम्बर होता है, अगर मोटर मे कभी भी कोई खराबी आ जाती है।  तब हम आसानी से निर्माता को मोटर का सीरियल नम्बर बता कर इस मोटर से जुड़ी सहायता आसानी से ले सकते है।

Hz (Frequency)

Hz मतलब है Hertz होता है मतलब हमारी यह मोटर कितनी फ्रीक्वेंसी पर चलने के लिए बनी है।
Hz50   +5/-5  मे Hz50 का मतलब।

यह मोटर 50 Hertz फ्रीक्वेंसी पर चलने के लिए बनाई गई है और +5 -5 का मतलब अगर फ्रीक्वेंसी मे 5% कम या ज्यादा भी होता है, तो यह मोटर उसको संभाल सकती है।

In.Cl (insulation class)

In.Cl का मतलब इंसुलेशन क्लास होता है। और F,B,Y…. इनमें से किसी एक प्रकार का इंसुलेशन इस्तेमाल किया गया है यह इंसुलेशन यह दर्शाता है कि मोटर की वाइंडिंग के ऊपर किस तरह की तरह की इन्सुलेशन है।

eff (Efficiency)

Eff की फुल फॉर्म efficiency होती है। एफिशिएंसी इस बात को बताती है की हमारी मोटर हमको कितना फायदा करा रही है। यह eff. मोटर के फुल लोड के हिसाब से लिखी होती है।
जैसे- हमने मोटर को फुल लोड पर चला रखा है ओर यदि उस मोटर पर eff%  80%लिखी है। तो इसका मतलब यह मोटर उसकी असली ताकत का सिर्फ 80℅ ही काम कर पाती है। इस मोटर की ताकत हमेशा 20% बिना वजह वेस्ट होती है। उसको हम कभी उपयोग नही ले सकते है। हमको हमेशा ज्यादाefficiency की मोटर लगाने चाहिए। 

Amb – 50°C (Ambient Temperature)

motor nameplate पर लिखा amb पॉइन्ट मोटर की बेहतर लाइफ के लिए यह बहुत जरूरी पॉइन्ट है।
Amb का मतलब Ambient Temperature होता है। एमबीइन्ट टेम्परेचर का मतलब होता है आस पास का तापमान।
ओर amb 50℃ का मतलब यह है, की इस मोटर की बेहतर लाइफ के लिए हमे मोटर के आस पास का टेम्परेचर 50℃ से कम रखना चाइए।

ref IS (IndianStandard)

इसका मतलब IS स्टैण्डर्ड रेफरेंस नंबर होता है, इस रेफरेंस नंबर का मतलब होता है की निर्माता ने इस मोटर को उस नंबर की गाइड लाइन की सहायता से    बनाया गया है

P.F. (Power Factor)

PF का पूरा नाम पॉवर फैक्टर होता है। PF 0.85 का मतलब, इस मोटर का पॉवर फैक्टर 0.85 है। सभी मोटर का पावर फैक्टर अलग अलग होता है। 
पॉवर फैक्टर क पर काफी उपयोगी पोस्ट है अगर आप लोग को इस बारे में जानकारी चाहिए तो comments करके बताइए

Motor Types (sq cage)

इसका मतलब यह है की मोटर का टाइप क्या है मोटर कई टाइप की होेती है।इसमे ph का मतलब फेज, लेकिन यह मोटर 3 फेज स्क्यूरेल केज इंडक्शन मोटर है।
 sq का मतलब स्क्यूरेल केज और ind का मतलब इंडक्शन होता है।

Bearing Number (6201,6202)

यह मोटर में दोनो साइड पर लगी बियरिंग का नंबर होता है मतलब मोटर के अंदर किस साइज की बियरिंग लगी है वह देखने के लिए हमको मोटर खोलने की जरूरत नहीं पड़ती। जब कभी मोटर की बैरिंग खराब हो जाती है तब यह नम्बर को देख कर आसानी से बैरिंग की साइज का पता कर सकते है। लेकिन यहां एक बात और याद रखे कि मोटर की बियरिंग दोनों तरफ की अलग-अलग तरह के भी हो सकता है । जैसे – एक 6201 और दुसरा 6202 है

तो दोस्तो उम्मीद है आज आपको Motor Nameplate detail मोटर नेमप्लेट से जुड़े कई सवालो के जवाब मिल गए होंगे, अगर आपके अभी भी कोई सवाल इलेक्ट्रिकल से जुड़े है, तो आप हमे कमेन्ट करके जरूर बताये।

Design a site like this with WordPress.com
Get started